Rajani katare

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डायरी ---- भाग - 5 हलचल ऐ अप्रैल

              लेखनी डायरी चैलेंज
विषय- अप्रेल

शीर्षक- "हलचल ए अप्रेल"  करोना का कहर

माह अप्रेल ने तो लोगों को हलाकान कर डाला,
कोरोना का कहर अपनी चरम सीमा पर जाने को बेताब था.... बसें, रेलगाड़ी सभी आवागमन के साधन बंद कर दिए गये थे.....
जो जहाँ था सब वहीं फंस कर रह गये...सभी के घर के लोग अलग परेशान हो रहे थे.....
नीचे तबके के लोगों को सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ा, रोज दिहाणी पर काम करने वाले, मजदूर वर्ग...न खाने को बचा, न ही जाने को पैसा, कैसे घर लौटें... कोई साधन नहीं....

कोरोना के चक्कर में लोग बेचारे मीलों पैदल चलने को मजबूर हो गये......
वैसे सरकार ने भी मजदूरों को घर पहुंचाने की
व्यवस्था करी थी लेकिन कितनी.....
व्यवस्था कम और लाखों लोग...कैसी आपाधापी मची है...जिसने भी ये मंज़र देखा है...आज भी याद करके दहल जाएगा......
छोटे से सूक्ष्म जीव ने ऐसा तांडव मचाया, जहाँ
देखो वहाँ मौत का नज़ारा देखने मिल रहा.....
कोरोना के इतने केस रोज निकल रहे हलाकान
हो गया आदमी.....

कोई घर से बाहर नहीं निकल रहा, लाकडाऊन
लग गया.... सड़कों पर इंसान तो क्या जानवर 
भी नजर नहीं आ रहे थे..... उन्हें भी खतरे का एहसास हो गया था......
मेरा बड़ा बेटा भी लाक लाकडाऊन में फंस गया 
था....कहां से किस मुश्किल में परमीशन लेकर
गाड़ी करके बड़ी मुश्किल में आ पाया था....
हम लोगों की उस समय क्या स्थिति हुयी होगी
आपसमझ सकते हैं... छोटा बेटा बैंगलोर में था, इत्तेफाक से छोटे बेटे की फ्लाइट 22 मार्च को थी अब जब वहां कोरोना का पता चला तो उसने वो फ्लाइट केंसिल करी....इसलिए कि हैदराबाद में दूसरी फ्लाइट के लिए तीन घंटे वेट करना पड़ेगा...
उसे 21 तारीख की कलकत्ता से फ्लाइट मिल 
गयी.... जबलपुर के लिए सो वो समय से घर आ गया... दूसरे दिन ही लाकडाऊन लग गया था...पर आज भी 2021मेंभीउसका कहर बरकरार है....।
मजदूरों की समस्या पर आधारित....
मेरी काव्य रचना.....

                   "मजदूरों का दुख"

छा गयीं काली घटायें,बादल दुखों के छाये, 
माथे पर जो आयीं उनके, चिंता की रेखायें,

अचानक से, लाकडाउन जो आया,
प्रवासी मजदूरों पर,पड़ गया भारी, 

काम बंद, फैक्टरियों में पड़ गये ताले, 
बंद हो गये, रोजी रोटी के सारे दरवाजे, 

रोजी रोटी का जुगाड़, कहाँ से होगा अब,
बन गया था करोना, परेशानी का सबब, 

छटपटाने लगे मजदूर, दुख से अपने, 
लोट पायेंगे अब कैसे, हम घर अपने, 

आने जाने के साधन, हो गये सब बंद, 
किराया भाड़ा भरने, पैसा न था पास, 

जिम्मेदारी बड़ी भारी,आ गयी उन पर, 
पत्नी बच्चे, भरा पूरा उनका परिवार, 

दुखों से भर गया था, लबालब मन उनका,
मदद की लगाये आस, कोई न आया पास,

फैसला करना पड़ा, खुद ही को, 
पैदल ही चलने की,घर जाने ठानी,

चलते चलते, पहुँचेगे एक दिन घर, 
रहे यहाँ तो, भूखे ही मर जायेंगे, 

खाली है पेट, सफर लम्बा, चलना पैदल, 
मन था दुखी, कदम भारी, चलना मुश्किल, 

कठिन सफर था, चलना फिर भी जारी, 
कोई हुआ बेहोश, राह चलते गिर गया, 

राह में ही कुछ ने, तोड़ दिया दम, 
किसी की पत्नी, किसी के बच्चे, 

मजदूरों का दुख, समझ न पाया कोई, 
न पूछा किसी ने, पास न आया कोई, 

कैसे होगी उसके, दुखों की भरपाई, 
रोजी रोटी छूटने का, दुख कितना भाई, 

पैसा पास न होने का, दुख कितना भाई, 
पैदल चलने की मजबूरी, दुख कितना भाई, 

रोटी का एक निबाला,न मिलने का दुख भाई, 
बीच राह में टूट गया दम,उसका दुख मेरे भाई, 

अन्तर्मन कैसे सहे, कर रहा चीत्कार, 
दुखी मन,मानवता को, रहा धिक्कार,

इस असह्य दुख की,पीड़ा को कैसे सहें, 
हम मजदूरों का,धनी धोरी कोई नहीं क्या...? 

     🙏🌹जय श्री कृष्णा🌹🙏

         काव्य रचना -रजनी कटारे 
                 जबलपुर म.प्र.



                                       

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